राष्ट्रीय

भाषा अनेक है लेकिन देश, संस्कृति और भाव एक हैः अतुल कोठारी

वाराणसी, 03 सितम्बर। मां, मातृभूमि और मातृभाषा का विकल्प नहीं हो सकता। भाषा अनेक है लेकिन देश एक है, संस्कृति एक है और भाव भी एक है। भारत में भाषाओं की विभिन्नता के बावजूद भाव सभी को एकरूप बनाए रखता है। हम अक्सर दूसरे की भाषा समझने में त्रुटियां कर सकते हैं लेकिन भाव को हम सही समझते हैं।

उक्त बातें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल भाई कोठारी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महामना मालवीय सभागार में आयोजित राष्ट्रीय एकात्मता एवं भारतीय भाषाएं विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता कही। उन्होंने कहा कि एक दूसरे की भाषा, संस्कृति और परम्परा को समझने की आवश्यकता है, जिसके लिए अनुवाद जरूरी है। सभी भारतीय भाषाओं का परिवार है तो वह संस्कृत है, जो वैदिक परम्परा की भाषा है।

संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित भाजपा विधायक डॉ. नीलकंठ तिवारी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि राष्ट्रीय एकात्मता और भारतीय भाषाएं विषय काशी के अनुकूल है। यहां परस्पर एकात्मता का भाव देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि काशी की गलियों में जब जाइए तब वैदिक ऋचाएं मिलती हैं। वेद के मंत्र सुनने को मिलते हैं। इसे जो सुनता है वो यहां का होकर रह जाता है। वहीं, एकता और एकात्मता के बीच भेद को बताते हुए उन्होंने कहा कि एकता समाज की स्थिति को दर्शाती है, जबकि एकात्मता हमारे वैचारिकता के भाव को प्रदर्शित करता है। उन्होंने कहा कि इसी एकात्मता के बोध की वजह से ही तमाम आक्रमणों को झेलने के बाद भी राष्ट्रहित का भाव सार्वभौमिक रहता है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय एकात्मता के मूल में हैं। सभी भाषाओं की जननी संस्कृत ही है।

इससे पहले, मृनाल-आनंद एवं पंकज जी द्वारा शास्त्रीय गायन किया गया। इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चारों के बीच दीप प्रज्ज्वलन एवं हिन्दुस्थान समाचार के संस्थापक एवं पुनरोद्धारक के चित्रों एवं महामना मालवीय जी की प्रतिमा पर पुष्पार्चन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। वहीं, मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय, मुख्य वक्ता अतुल कोठारी एवं अन्य अतिथियों को पुष्प गुच्छ, अंगवस्त्रम और स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया गया। इस दौरान युगवार्ता एवं नवोत्थान के विशेषांक का लोकार्पण हुआ। मंच संचालन वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी ने किया।

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