हरियाणा

400वां प्रकाश पर्व पर विशेष

सोनीपत

  आजादी का अमृत महोत्सव के श्रंखला में 24 अप्रैल को पानीपत में हिंद की चादर श्री गुरू तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश पर्व आयोजित किया जा रहा है। इसी कड़ी में गुरूद्वारा श्री गुरूनानक सतसंग सभा गीता भवन चौक के महासचिव परमजीत सिंह ने हिंद की चादर श्री गुरू तेग बहादुर की के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि श्री गुरू तेग बहादुर साहब बाबा बकाला मेंं गुरू के रूप में प्रकट हुए संगतों में भारी उत्साह था एवं भारी संख्या में संगत गुुरू जी के दशनों के लिए पहुंचने लगी। बाबा बकाला से चल कर गुरू जी सतलुज दरिया के किनारे पहुंचे।


श्री सिंह ने बताया कि सतलुज दरिया पर पहुंचने के बाद श्री गुरू तेग बहादुर साहब ने वहां एक नया शहर बसाया, जिसका नाम उन्होनें ने अपनी माता जी के नाम पर चक नानकी रखा जो बाद में अन्नदपुर साहब कहलाया। कुछ समय अनन्दपुर साहब ठहरने के पश्चात गुरू जी पूर्व दिशा की यात्रा के लिए निकल पड़े। उस समय के बादशाह औरंगजेब के जुल्म जनता पर बढ़ते ही जा रहे थे। हिन्दुओं को तरह-तरह से प्रताडि़त किया जा रहा था। गुरू जी ने जनता को जागरूक करने के लिए हिन्दू तीर्थो की यात्रा आरम्भ की। हिन्दू तीथों की यात्रा के दौरान गुरू जी ने हरिद्वार की यात्रा की। इसी यात्रा के दौरान पानीपत होते हुए गुरू जी सोनीपत पहुचें एवं यहा भाई मिश्रा जी के घर ठहरे जो कि सब्जी मण्डी के पास राज मौहल्ला में है। यहा बाद में गुरू जी के वस्त्र भी प्राप्त हुए थे। जिसके बाद भाई मिश्रा जी ने अपने घर को गुरू नानक देव घरमसाल ही बना दिया था, जो इस समय यहां गुरूद्वारा श्री गुरू तेग बहादुर साहब है। इसी यात्रा के दौरान गुरू जी ने मथुरा की यात्रा की एवं प्रयागराज संगम में स्नान किया। गुरू गोविन्द सिंह जी ने बाद में अपनी वाणी में लिखा भी है।


‘मुर पित पुरब कीयस पयाना, भांत भांत के तीर्थ नाना
तब ही जात त्रिवणी भय पुन दान दिन करत बितऐ।।


इसके बाद गुरू जी पटना साहब पहुंचे जहां परिवार को छोडक़र वह असम यात्रा पर चले गए। जिस समय वह असम यात्रा पर थे। तभी उनके पुत्र गोविन्द राय जी जो बाद में गुरू गोबिन्द सिंह बने का जन्म हुआ। गुरू तेग बहादुर साहब शांति के पूंज थे। जब वह असम पहुंचे तो वहॉ राजा राम सिंह एवं कबीलों में जंग चल रही थी, जिसे चार महीने हो चुके थे। गुरू जी ने मानवता की भलाई को देखते हुए दोनों में सुलह करवाई। क्योंकि गुरू जी की वाणी के वचन हैं।
भय काहु को देत नहि। नहि तह मानत आन।।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker