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(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) गीतकार डीएन मधोक फोन पर लिखवाते थे गीत

अजय कुमार शर्मा

डीएन मधोक को ज्यादातर फिल्म प्रशंसक चालीस और पचास के दशक के एक लोकप्रिय गीतकार विशेषत: तानसेन के यादगार गीत- दिया जलाओ जगमग जगमग…, जिसे कुंदन लाल सहगल की आवाज और फिल्म रतन के गाने- अखियां मिला के जिया भरमा के चले नहीं जाना…, जिसे जोहराबाई अंबालेवाली ने गाकर अमर कर दिया था, के लिए आज भी याद करते हैं। किसी जमाने में गीतकार के रूप में फिल्मोद्योग में उनकी बहुत ज्यादा मांग थी। हर निर्माता अपनी फिल्मों के गाने उन्हीं से लिखवाना चाहता था। उन दिनों उनकी कलम लाहौर और बंबई (मुंबई ) दोनों जगह की फिल्मों के लिए चलती थी। हाल यह था कि कई बार तो वह लाहौर से फोन पर मुंबई और मुंबई से लाहौर फोन कर गीत के बोल लिखवाया करते थे।

मधोक साहब अच्छे गीतकार ही नहीं अच्छे स्क्रीनप्ले राइटर, संवाद लेखक, निर्देशक यहां तक कि अभिनेता और निर्माता भी थे। उन्होंने अपना करियर कोलकाता के न्यू थियेटर में अभिनेता के रूप में शुरू किया। 1931 में वे मुंबई आ गए और उन्होंने कई फिल्मों के लिए गीत और स्क्रीनप्ले लिखे तथा कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। नौशाद अली उर्फ नौशाद को फिल्मी जगत से परिचित कराने में उन्हीं का योगदान था। अपने निर्देशन में बनी पंजाबी फिल्म ‘मिर्जा साहिबा’ (1939) में उन्होंने पहली बार उन्हें सहायक संगीतकार के तौर पर रखा था। उन्होंने अपने जीवनकाल में 17 फिल्में निर्देशित कीं। निर्देशक के तौर पर उनकी अंतिम फिल्म मधुबाला प्रोडक्शन की नाता (1955) थी।

1939 में उन्होंने चंदूलाल शाह की संस्था रणजीत मूवीटोन में नौकरी कर ली थी। वैसे तो वहां पर कहानियां, स्क्रीनप्ले, संवाद आदि सभी कुछ लिखा करते थे, लेकिन गीतकार के तौर पर उन्हें अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई। रणजीत मूवीटोन में उन्होंने कई यादगार फिल्मों के लिए सुंदर गीत लिखे जिनमें कुछ प्रमुख फिल्में थीं- नदी किनारे (1939), मुसाफिर(1940), पागल (1940), उम्मीद (1941), भक्त सूरदास (1942), बंसरी (1943), नर्स (1943) और बेला (1947)। उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 116 फिल्मों के लिए 850 गीत लिखे। मानसरोवर फिल्म के नाम से अपनी कंपनी बनाकर दो फिल्मों नाव (1948) और खामोश सिपाही (1950) का निर्माण भी किया।

उनके बारे में उस समय के प्रसिद्ध अभिनेता जयराज ने कई रोचक जानकारियां साझा की हैं। वे बताते हैं कि मधोक साहब पैदल चलने के बड़े शौकीन थे और प्रकाश स्टूडियो, अंधेरी से दादर अपने घर पैदल ही आते थे। उन दिनों जयराज के पास मोटरसाइकिल थी और वे माटुंगा में रहते थे। घर से प्रकाश स्टूडियो पहुंचने में उन्हें मुश्किल से 11 मिनट लगते थे, लेकिन डीएन मधोक की बदौलत उन्हें अधिकतर पैदल ही चलना पड़ता, क्योंकि पैदल चलते हुए ही मधोक साहब को फिल्म की कहानी और संवाद लिखने का मूड आ जाता था। राह चलते मधोक साहब फिल्मों के संवाद-दृश्य आदि बोलते जाते और जयराज लिखते जाते और इस तरह बातों-बातों में वे दोनों अंधेरी से माटुंगा पहुंच जाते, लेकिन वहां से आगे दादर तक मधोक को अकेले ही जाना पड़ता था। मधोक साहब कोई भी गीत लिखने के बाद उसे केवल संगीतकार को सौंप कर ही चुप नहीं रहते थे बल्कि खुद ही उसके तर्ज भी संगीतकार को बतलाते थे। गीत लिख लेने पर माचिस पर चुटकी बजा बजाकर वे उसकी तर्ज को अंतिम रूप देते। लोक संगीत का उन्हें अच्छा ज्ञान था। नौशाद को अपने प्रारंभिक दौर में उनके इस ज्ञान का अच्छा लाभ हुआ।

मधोक साहब का पूरा नाम पंडित दीनानाथ मधोक था। उनका जन्म 22 अक्टूबर 1902 को गुजरावाला (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था जहां उनके पिताजी पोस्टमास्टर थे। लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज से वे बीए की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, क्योंकि तब तक उन्हें मुशायरों, कवि सम्मेलनों में भाग लेने का चस्का लग गया था। बाद में इनके पिता ने उनको इंडियन रेलवे में क्लर्क की नौकरी दिलवा दी। अपने अंतिम दिनों में वह ज्योतिष की तरफ आकर्षित हुए और भविष्यवाणियां करने लगे। न्यू थियेटर के जमाने के अपने मित्रों पृथ्वीराज कपूर, केएल सहगल और जगदीश सेठी से उनके गहरे संबंध रहे। 9 जुलाई, 1982 को 80 वर्ष की आयु में हैदराबाद शहर में उन्होंने अंतिम सांस ली।

चलते चलते: रणजीत मूवीटोन की फिल्म ‘परदेसी’ में गायिका अभिनेत्री खुर्शीद ने खेमचंद प्रकाश के संगीत निर्देशन में ‘पहले जो मुहब्बत से इनकार किया होता…’ गीत गाया था। उसके गीतकार डीएन मधोक ही थे। यह गीत लिखने से पहले वे लाहौर में थे और मुंबई में इस गाने के बिना ‘परदेसी’ का काम ठप पड़ा हुआ था। खेमचंद प्रकाश ने मुंबई से उन्हें लाहौर फोन किया और डीएन मधोक ने लाहौर से फोन पर ही यह गीत लिखवाया। उसके बाद ही मुंबई में ‘परदेसी’ का काम आगे बढ़ सका।

(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

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