उत्तर प्रदेश

 सीओपीडी के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ : डॉ सूर्यकान्त

लखनऊ, 15 नवम्बर। क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस भी कहते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के सीओपीडी दिवस की थीम है- जीवन हेतु फेफड़े (योर लंग फॉर लाइफ)।

विश्व सीओपीडी दिवस के आयोजन का उद्देश्य जागरुकता बढ़ाना, विचार साझा करना और दुनिया भर में सीओपीडी के बोझ को कम करने के तरीकों पर चर्चा करना है।

भारत में छह करोड़ रोगी सीओपीडी से ग्रसित

किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्पीरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ सूर्यकान्त ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सीओपीडी दुनिया भर में होने वाली बीमारियों से मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। वर्ष 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी। वहीं भारत में लगभग पांच लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। भारत में करीब छह करोड़ रोगी सीओपीडी से ग्रसित हैं। धूम्रपान, परोक्ष धूम्रपान सीओपीडी का प्रमुख जोखिम कारक है, किन्तु आज बढ़ता वायु प्रदूषण, इसके मुख्य कारणों में से एक है।

सीओपीडी की बीमारी में बढ़ जाता है ह्रदय रोग का खतरा

डॉ सूर्यकान्त का कहना है कि सीओपीडी की बीमारी में प्रारम्भ में सुबह के वक्त खांसी आती है, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है। गले की मांसपेशियां उभर आती हैं और शरीर का वजन घट जाता है। पीड़ित व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है। इस बीमारी के साथ ह्नदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता है। हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है, हृदय रोग, किड़नी रोग, लिवर रोग, मानसिक रोग, अनिद्रा, अवसाद व कैंसर आदि का खतरा बढ़ जाता है।

परीक्षणः

सामान्यतः प्रारंभिक अवस्था में एक्स-रे में फेफड़े में कोई खराबी नजर नहीं आती, लेकिन बाद में फेफड़े का आकार बढ़ जाता है। इस रोग का पता लगाने का तरीका स्पाइरोमेटरी (कम्प्यूटर के जरिये फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच) या पीएफटी है। कुछ रोगियों में सीटी स्कैन की भी आवश्यकता पड़ती है।

उपचारः

सीओपीडी के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है, जिसे चिकित्सक की सलाह से नियमानुसार लिया जाना चाहिए। खांसी व अन्य लक्षणों के होने पर चिकित्सक के परामर्श से संबधित दवाइयां ली जा सकती हैं। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर चिकित्सक की सलाह से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है। गम्भीर रोगियों में नेबुलाइजर, ऑक्सीजन व नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एनआईवी) का उपयोग भी किया जाता है।

सावधानियां:

सीओपीडी का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को बन्द करना है। जो रोगी प्रारम्भ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं, उनको परेशानी कम होती है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है तो उसे? शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे काम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए। कोविड काल में मास्क लगाना अति आवश्यक माना गया है, यह हमें वायु प्रदूषण से भी बचाता है, जिससे सीओपीडी का खतरा कम होता है।

सीओपीडी से बचाव के लिए क्या करें

सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें। मास्क लगायें, सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें। सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़े, यह आपको जुकाम, फ्लू तथा कोरोना की बीमारी से बचाकर रखती है। गुनगुने पानी से नहाएं। सांस के रोगी न सिर्फ सर्दी से बचाव रखें वरन नियमित रूप से चिकित्सक के सम्पर्क में रहें व उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज भी दुरूस्त कर लें। धूप निकलने पर धूप अवश्य लें।

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