हमारी संस्कृति की रक्षा करती है भाषा: डॉ. राकेश बी दुबे
मेरठ, 02 सितम्बर। राष्ट्रपति भवन के ओएसडी (हिन्दी) डॉ. राकेश बी दुबे ने कहा कि भाषा का संबंध हमारे जीवन से है। भाषा हमारी संस्कृति की रक्षा करती है। परन्तु हमने भाषा की रक्षा करना ही छोड़ दिया है। भाषा और संस्कृति किस प्रकार एक दूसरे को आगे बढ़ाती है। इसे समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पीढ़ी के अन्तराल के दौरान संकेतों के अर्थ बदल जाते हैं। गांधी जी ने कहा कि बच्चे को मातृभाषाएं सिखाएं तभी तो मां से जुड़ा रहेगा। भाषाओं से विरोध न करें अपितु मित्रता करें।
चौधरी चरण सिंह विवि के हिन्दी विभाग और उप्र भाषा संस्थान के सहयोग से चल रही राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन शुक्रवार को कई विद्वानों ने अपने विचार रखे। मुख्य वक्ता डॉ. राकेश बी दुबे ने कहा कि शिक्षा का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जो समाज विज्ञान में नहीं आता। समाज विज्ञान से बिना जुड़े कोई भी विषय अधूरा है। उन्होंने माहेश्वरी की कविता ‘यदि होता किन्नर नरेश मैं’ की व्याख्या की। किन्नर देव सभा का एक सहायक देव होता है। जो संगीत का विशेषज्ञ होता है। आज प्रचलित शब्द अज्ञात बनते जा रहे हैं।
प्रो. अतवीर सिंह ने कहा कि समाज विज्ञान में बेहतर नागरिक बनने का अध्ययन होता है। गर्व ज्ञान एवं गुण पर करना चाहिए। समाज में भाषाओं के कई स्तर हैं जो अलग-अलग रूपों में दृष्टिगत होती है। प्रो. योगेन्द्र सिंह ने कहा कि सभी प्रश्न समाज से ही उत्पन्न होते हैं एवं उनके उत्तर भी समाज से ही मिलते हैं। हमारे यहाँ भाषा के लिए कुछ भी अर्जित नहीं किया गया है। भाषा के स्तर को बढ़ाने के लिए शिक्षकों को भी राष्ट्रधारा में आना होगा। प्रो. विघ्नेश त्यागी ने कहा कि समस्याएं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होती हैं। हिंदी में शब्दों को समाहित करने की हिंदी में सर्वाधिक क्षमता है। नार्वें से आये प्रवासी साहित्यकार प्रो. सुरेश चन्द शुक्ल को प्रेमचन्द सम्मान से सम्मनित किया गया। प्रो. सुभाष थलेड़ी ने कहा कि मीडिया शब्द कब से आया यह महत्वपूर्ण प्रश्न है। आज मीडिया जनसमुदाय में बहुप्रचलित है। आज से हजार वर्ष पूर्व हिंदी का विकास होना शुरू हुआ। वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र सिंह ने हिंदी भाषा और मीडिया के संबंध में कुछ संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि हिंदी में अंग्रेजी के टाइटिल वाली पत्र-पत्रिकाएं शुरू हुईं। आज प्रिंट मीडिया में अंग्रेजी घुसपैठ में सफल हो रही है। प्रो. प्रशांत कुमार ने कहा कि उदंत मार्तण्ड आजादी के आंदोलन में अलख जलाने वाला पहला अखबार था। पत्रकारिता और साहित्य एक साथ ही रखे जाते थे। आज हिंदी सब जगह मजबूत बन गई है। डॉ. अमर नाथ अमर ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता आजादी से पूर्व एक दूसरे के पूरक थे। आजादी के बाद दोनों अलग-अलग होते चले गए। संगोष्ठी में प्रो. एनसी लोहनी, भीम प्रकाश सिंह, प्रो. वाचस्पति मिश्र, दिनेश मंथारपुर, पारूल जौली, डॉ. संजय कुमार, डॉ. रामयज्ञ मौर्य, डॉ. विजयबहादुर त्रिपाठी, डॉ. मोनू सिंह, डॉ. विद्यासागर सिंह, डॉ. प्रवीण कटारिया आदि उपस्थित रहे।