अंतर्राष्ट्रीय

 बांग्लादेश में मंहगाई और बेरोजगारी के बावजूद सत्ताधारी पार्टी की लोकप्रियता बरकरार

ढाका, 14 जनवरी। बांग्लादेश में मंहगाई की वजह से मध्यम वर्ग और गरीबों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। उस पर से बेरोजगारी की मार से वहां की जनता परेशान है। बावजूद इसके सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग विपक्षी बीएनपी के मुकाबले लोकप्रियता की दौड़ में काफी आगे नजर आ रही है।

बांग्लादेश में आम चुनाव को एक साल भी नहीं बचा है। न केवल देश के राजनीतिक दल, बल्कि कुछ विदेशी ताकतें भी बांग्लादेश की सरकार को प्रभावित करने के लिए विभिन्न तरीकों से प्रयास कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण इस देश की महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति है। ऐसे में विदेश नीति के मामले में बांग्लादेश सरकार को भी बहुत सोच-समझकर फैसला लेना पड़ता है। हालांकि अवामी लीग ने खुलकर भारत के प्रति गहरी मित्रता और वफादारी दिखाई है।

उच्च शिक्षित युवाओं में संतोषजनक नौकरी नहीं मिलने को लेकर निराशा बढ़ रही है। देश में सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं। निजी क्षेत्र वांछित रूप में नहीं बढ़ रहा है। इसलिए रोजगार के अवसर नहीं बढ़ रहे हैं। बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (बीआईडीएस) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के तहत 66 प्रतिशत स्नातक बेरोजगार हैं।

पिछले 10 वर्षों में देश में स्नातक छात्रों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। क्योंकि देश में सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ रही है। 10 साल पहले भी दो से ढाई लाख छात्र ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन पास करने के बाद नौकरी की तलाश में थे। अब वह संख्या बढ़कर चार-पांच लाख हो गई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार, बांग्लादेश में श्रम बल प्रति वर्ष औसतन दो प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। बांग्लादेश सांख्यिकी ब्यूरो (बीबीएस) के नवीनतम श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार, देश में 26.3 लाख लोग बेरोजगार हैं। इनमें 14 लाख पुरुष, 12 लाख 30 हजार महिलाएं हैं, जो कुल श्रम शक्ति का 4.5 प्रतिशत हैं।

लगातार बढ़ती बेरोजगारी को लेकर पूछे जाने पर बांग्लादेश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री डॉ. हसन महमूद ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया “सभी बेरोजगारों को नौकरी देना संभव नहीं है। हालाँकि, बड़ी संख्या में बेरोजगार लोगों के पास अलग-अलग प्रकार के रोजगार के अवसर हैं। पिछले चुनाव में हमारा नारा था ”युवा ताकत है, युवा समृद्धि है”। हर साल हमारे 10-15 लाख युवा विदेश जाते हैं।”

मंहगाई की बात करें तो कुछ साल पहले तक बांग्लादेश में चावल की कीमत 20-22 रुपये प्रति किलो थी। अब यह बढ़कर 45-50 रुपये प्रति किलो हो गया है। इस बारे में पेशे से ड्राइवर एक सरकारी कर्मचारी ने बताया, ”कोई निश्चित कीमत नहीं है। रुई ( रोहू मछली) 300-350 टाका तो कहीं 750-800 टाका प्रति किलो है। सफेद चीनी 65 टाका प्रति किलो तो बादामी चीनी 120 टाका है। हम काफी दबाव में हैं।”

लेकिन लोगों की औसत आय क्या है? ढाका में एक रिक्शा चालक ने कहा कि वह एक दिन में करीब हजार रुपये कमाता है। इसमें से किराए के रिक्शा के लिए 120 रुपये देने होंगे। हालांकि, हर किसी की यह आमदनी हर दिन नहीं होती है। जुल्फिकार नाम के बांग्लादेश बेतार के एक ड्राइवर ने कहा कि वह 35 साल पहले काम पर आया था। तब बेसिक 4,300 टाका था। अब कुल मासिक वेतन 33 हजार 800 टाका है। ओवरटाइम करने पर हर महीने 12-14 हजार टाका की आमदनी हो जाती है। मैस्कॉम (जन संपर्क) विभाग के एक ड्राइवर ने बताया, ”मैं सेवानिवृत्ति के कगार पर हूं। मूल रूप से वीआईपी लोगों की ड्राइविंग करता हूं। ओवरटाइम सहित प्रति माह लगभग 75 हजार टाका की कमाई हो जाती है।

डॉ हसन महमूद, ने हाल ही में एक राजकीय यात्रा पर आए भारतीय पत्रकारों से बातचीत में कहा, “मुद्रास्फीति केवल एक विशेष देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक समस्या है।” यूरोप-अमेरिका भी इससे अछूते नहीं रहे। बांग्लादेश में मुद्रास्फीति की वर्तमान दर नौ प्रतिशत से कम है। कई देशों में यह दर इससे अधिक है। बांग्लादेश के लगभग डेढ़ करोड़ गरीबों को विभिन्न सरकारी सहायता दी जा रही है। पिछले तीन वर्षों में, बांग्लादेश में एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरा है।”

सरकार के इस दावे को विपक्ष मानने को तैयार नहीं है और बांग्लादेश की बेरोजगारी की समस्या और महंगाई को ट्रम्प कार्ड के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। उसके बावजूद ड्राइवर जुल्फिकार भरोसे का साथ दावा करते है्ं, ””शेख हसीना फिर जीतेगी।”

ऐसा क्यों? ड्राइवर ने कहा, “वह दयालु हैं। वह हमारे दिलों में जगह बनाने में सक्षम रही हैं। वह सबकी पीड़ा समझती हैं। हमारी समस्याओं का हल ढ़ूंढ़ने की कोशिश कर रही हैं।

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